मैं मिथिला की मधुर मिठास , तुम गढ़वाल की गूंजती गान प्रिय।

मैं गंगा की धारा बहता, तुम हिमालय की शान प्रिय।

मैं मैदानों का राजा हूं, तुम पहाड़ो की प्राण प्रिय!

 

मैं छठ के गीतों की गूंज, तुम जागर की पुरानी संगीत प्रिय,

मैं मंदिरो की आरती हूं, तुम देव प्रयाग कि धुन प्रिय।

मैं मैदानों का फैला अंबर, तुम चोटियों का अनूठा मेल हो,

मैं कथा कहता गंगा तट, तुम नदी उमड़ती वेग प्रिय,

 

मैं रात्रि का खामोश गान , तुम सुबह की मीठी मुस्कान प्रिय।..

मैं सूरज की तपन हूं, तुम चांदनी की ठंडी मिठास हो,

मैं पगडंडियों का साथी हूं, तुम ऊंची चट्टान प्रिय,

मैं मैदानों का स्थिर जीवन , तुम बादलों की आसमान प्रिय।

 

मैं खेतों की हरियाली हूं, तुम देवदारों की छांव प्रिय,

मैं सरसों की खिली मुस्कान, तुम बर्फीली वादियों की ठांव प्रिय।

मैं कोयल की कुहुक हूं, तुम बंसुरी की मीठी तान प्रिय,

मैं बरसात की सोंधी माटी, तुम बर्फ से ढकी मुस्कान प्रिय।

 

मैं गोधूलि की शांत छवि, तुम भोर की उजली गरिमा हो,

मैं तुलसी चौरे का दीप, तुम घंटियों की झंकार प्रिय,

मैं शिव की नगरी की आस्था, तुम बदरी-केदार का द्वार प्रिय।

 

हम दोनों हैं भारत के रंग, दो संस्कृतियों की सुगंध प्रिय,

मैं मैदानों की सरल धारा, तुम पर्वतों की अगम गंध प्रिय।

हम मिलें तो बने इक संगम, जैसे गंगा-भागीरथी का संग,

हम संग हैं तो पूरा जग है, प्रेम का है अनोखा रंग।..

 

मैं शाम का सन्नाटा तुम काली घनी रात प्रिय,

मैं पालक सा कोमल कोमल,

तुम कंटालि की झाड़ प्रिय

 

मैं गर्म झोंकों की धड़कन हूं, तुम पहाड़ों की शीतल सिहरन हो।”

मैं मुजफ्फरपुर का लीची हूं तुम उत्तराखंड की काफल हो…

मैं रस भरा फलों का राजा, तुम खट्टी कसैलीदार प्रिय

मैं आम्र वृक्ष की घनी छांव, तुम लाल गुलाबी

बुरांश प्रिय

 

Ravindra kushwaha