कौन कहता है आसमां ज़मीं से मिलते नहीं,
चलो कहीं दूर, किसी मोड़ पर चल के देखें।
चंद ख्वाब आँखों में,
कुछ हौसले साथ हों,
राहों में रोशनी हो,
नज़ारे भी ख़ास हों।
हवा से कहेंगे,
ज़रा रुख बदल के चले,
बादलों से कहेंगे,
ज़मीं पर पिघल के चले।
मुमकिन है जहाँ,
वहीं रास्ते भी मिलेंगे,
हम चाहें तो मंज़र नए भी खिलेंगे।
कौन कहता है आसमां ज़मीं से मिलते नहीं,
चलो किसी पहाड़ की चोटी पे चलते हैं।
मंज़िलें कदमों की जिद पे डगमगाएंगी,
बस इरादों के साथ चलते हैं।
हर ख्वाब की उड़ान को पंख मिले,
हर हौसले को नई रौशनी मिले।
रास्ते खुद कहेंगे मुसाफ़िर से,
कौन कहता है आसमा जमी से मिलते नहीं,,